Explainer: बांग्लादेश से आए लोगों को मिलेगी भारतीय पहचान, क्या है नागरिकता कानून की धारा 6A? जानिए असम से जुड़ा ये मुद्दा

Date:

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने 4:1 के बहुमत से ये फैसला सुनाया है। कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखा है। असम में बड़ी संख्या में बांग्लादेश से आए लोग रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण ऐतिहासिक फैसले में असम में बांगलादेश से आए प्रवासियों को नागरिकता देने के प्रविधान करने वाली नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को वैध और संवैधानिक ठहराया है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है।

धारा 6A, जिसे 1985 के असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद नागरिकता अधिनियम 1955 में शामिल किया गया था। इस कानून के विशेष प्रावधान और इसके संभावित प्रभावों की व्याख्या करता है। सुनवाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़ का कहना था कि 6A उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है, जो संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं और ठोस प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं।

नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A क्या है?

धारा 6A को नागरिकता अधिनियम में एक विशेष प्रावधान के रूप में शामिल किया गया था, जो 1985 के असम समझौते के तहत आने वाले लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए था। इसे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने अखिल असम छात्र संघ (AASU) के साथ हस्ताक्षरित किया था, जिसका नेतृत्व तब प्रफुल्ल कुमार महंत ने किया था। प्रफुल्ल कुमार महंत बाद में दो बार असम के मुख्यमंत्री भी बने।

इस कानून में असम समझौते द्वारा कवर किए गए व्यक्तियों की नागरिकता के संबंध में विशेष प्रावधान के रूप में संदर्भित किया गया है। प्रावधान के अनुसार, जो लोग 1 जनवरी, 1966 को या उसके बाद 25 मार्च, 1971 से पहले बांग्लादेश सहित कई क्षेत्रों से असम आए थे। तब से वह असम के निवासी हैं। उन्हें अब नागरिकता के लिए धारा 18 के तहत खुद को पंजीकृत करना होगा।

असम समझौते के प्रावधान के अनुसार, इन लोगों को उनके पता लगने के दिन से 10 साल तक भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण करने से रोक दिया गया था। असम समझौते के अनुसार, जो लोग 25 मार्च, 1971 के बाद आए थे, उन्हें भारत से बाहर जाना तय था। तब धारा 6ए में प्रवासियों, विशेष रूप से बांग्लादेश से असम में रहने वाले लोगों को नागरिकता देने की कट-ऑफ तिथि 25 मार्च, 1971 तय की गई थी।

धारा 6ए की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में क्यों चुनौती दी गई?

असम संयुक्त महासंघ और कई अन्य याचिकाकर्ताओं ने इस प्रावधान को चुनौती देते हुए कहा कि यह असम को अलग करता है। साथ ही ये भी कहा कि बड़े पैमाने पर आप्रवासन को बढ़ावा देता है। उन्होंने दावा किया कि 25 मार्च, 1971 से पहले असम में प्रवेश करने का दावा करने वाले अप्रवासियों को नागरिकता दिए जाने के कारण असम की जनसांख्यिकी में भारी बदलाव आया है। वे असम से अवैध अप्रवासियों की पहचान और बाहर किए जाने के लिए 1951 को कट-ऑफ साल के रूप में चाहते थे।

याचिकाकर्ताओं ने सबसे पहले साल 2012 में धारा 6A को चुनौती दी थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि धारा 6A भेदभावपूर्ण, मनमाना और अवैध है, क्योंकि इसमें असम और शेष भारत में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों को नियमित करने के लिए अलग-अलग कट-ऑफ तारीख प्रदान की गई हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के फैसले में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने खुद 6A की संवैधानिक  वैधता को बरकरार रखा और कहा कि असम में प्रवासियों की आमद की मात्रा अन्य राज्यों की तुलना में अधिक थी, क्योंकि भूमि का आकार छोटा है और विदेशियों की पहचान एक जटिल प्रक्रिया है। इसके अलावा, जज सूर्यकांत, जज एमएम सुंदरेश और मनोज मिश्रा ने सीजेआई से सहमति व्यक्त की। इन सभी जजों ने कहा कि संसद के पास इस तरह का प्रावधान लागू करने की विधायी क्षमता है।

जज जेबी पारदीवाला ने जताई असहमति

सुप्रीम कोर्ट में बहुमत के फैसले में कहा गया कि असम में प्रवेश करने और नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च, 1971 की कट-ऑफ तारीख सही थी। हालांकि, जज जेबी पारदीवाला ने असहमति जताई और धारा 6ए को असंवैधानिक करार दिया। उन्होंने कहा कि जाली दस्तावेजों के आगमन के कारण धारा 6ए की खुली प्रकृति का दुरुपयोग होने की संभावना अधिक हो गई है।

फैसले पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं

अखिल असम छात्र संघ (AASU) जिसने 1979 से 1985 के बीच असम में अवैध प्रवासियों के खिलाफ छह साल तक चले आंदोलन का नेतृत्व किया है। इस संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। प्रभावशाली छात्र संगठन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने असम समझौते को अपनी मंजूरी दे दी है। इसके तहत असम में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले सभी लोगों का पता लगाया जाना चाहिए और उन्हें देश से बाहर किया जाना चाहिए।

हालांकि, AASU के पूर्व नेता मतिउर रहमान जिन्होंने नागरिकता अधिनियम में धारा 6A को शामिल करने को चुनौती देने वाली असम स्थित संगठन संमिलिता महासभा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में मूल याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा कि उन्हें इस तरह के फैसले की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि यह राज्य को विदेशियों के लिए डंपिंग ग्राउंड बना देगा।

  1. Hindi News
  2. Explainers
  3. Explainer: बांग्लादेश से आए लोगों को मिलेगी भारतीय पहचान, क्या है नागरिकता कानून की धारा 6A? जानिए असम से जुड़ा ये मुद्दा

Explainer: बांग्लादेश से आए लोगों को मिलेगी भारतीय पहचान, क्या है नागरिकता कानून की धारा 6A? जानिए असम से जुड़ा ये मुद्दा

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने 4:1 के बहुमत से ये फैसला सुनाया है। कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखा है। असम में बड़ी संख्या में बांग्लादेश से आए लोग रहते हैं।

Edited By: Dhyanendra Chauhan@dhyanendraj
Updated on: October 18, 2024 11:51 IST

नागरिकता कानून की धारा 6A पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV GFXनागरिकता कानून की धारा 6A पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण ऐतिहासिक फैसले में असम में बांगलादेश से आए प्रवासियों को नागरिकता देने के प्रविधान करने वाली नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को वैध और संवैधानिक ठहराया है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। 

ADVERTISEMENT

https://www.indiatv.in/explainers/people-from-bangladesh-get-indian-identity-what-is-section-6a-of-citizenship-act-know-issue-and-assam-connection-2024-10-18-1084052

धारा 6A, जिसे 1985 के असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद नागरिकता अधिनियम 1955 में शामिल किया गया था। इस कानून के विशेष प्रावधान और इसके संभावित प्रभावों की व्याख्या करता है। सुनवाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़ का कहना था कि 6A उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है, जो संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं और ठोस प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं।

नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A क्या है?

धारा 6A को नागरिकता अधिनियम में एक विशेष प्रावधान के रूप में शामिल किया गया था, जो 1985 के असम समझौते के तहत आने वाले लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए था। इसे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने अखिल असम छात्र संघ (AASU) के साथ हस्ताक्षरित किया था, जिसका नेतृत्व तब प्रफुल्ल कुमार महंत ने किया था। प्रफुल्ल कुमार महंत बाद में दो बार असम के मुख्यमंत्री भी बने।

इस कानून में असम समझौते द्वारा कवर किए गए व्यक्तियों की नागरिकता के संबंध में विशेष प्रावधान के रूप में संदर्भित किया गया है। प्रावधान के अनुसार, जो लोग 1 जनवरी, 1966 को या उसके बाद 25 मार्च, 1971 से पहले बांग्लादेश सहित कई क्षेत्रों से असम आए थे। तब से वह असम के निवासी हैं। उन्हें अब नागरिकता के लिए धारा 18 के तहत खुद को पंजीकृत करना होगा।

असम समझौते के प्रावधान के अनुसार, इन लोगों को उनके पता लगने के दिन से 10 साल तक भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण करने से रोक दिया गया था। असम समझौते के अनुसार, जो लोग 25 मार्च, 1971 के बाद आए थे, उन्हें भारत से बाहर जाना तय था। तब धारा 6ए में प्रवासियों, विशेष रूप से बांग्लादेश से असम में रहने वाले लोगों को नागरिकता देने की कट-ऑफ तिथि 25 मार्च, 1971 तय की गई थी।

क्या है नागरिकता कानून की धारा 6A

Image Source : INDIA TV GFX

क्या है नागरिकता कानून की धारा 6A

धारा 6ए की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में क्यों चुनौती दी गई?

असम संयुक्त महासंघ और कई अन्य याचिकाकर्ताओं ने इस प्रावधान को चुनौती देते हुए कहा कि यह असम को अलग करता है। साथ ही ये भी कहा कि बड़े पैमाने पर आप्रवासन को बढ़ावा देता है। उन्होंने दावा किया कि 25 मार्च, 1971 से पहले असम में प्रवेश करने का दावा करने वाले अप्रवासियों को नागरिकता दिए जाने के कारण असम की जनसांख्यिकी में भारी बदलाव आया है। वे असम से अवैध अप्रवासियों की पहचान और बाहर किए जाने के लिए 1951 को कट-ऑफ साल के रूप में चाहते थे।

याचिकाकर्ताओं ने सबसे पहले साल 2012 में धारा 6A को चुनौती दी थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि धारा 6A भेदभावपूर्ण, मनमाना और अवैध है, क्योंकि इसमें असम और शेष भारत में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों को नियमित करने के लिए अलग-अलग कट-ऑफ तारीख प्रदान की गई हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के फैसले में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने खुद 6A की संवैधानिक  वैधता को बरकरार रखा और कहा कि असम में प्रवासियों की आमद की मात्रा अन्य राज्यों की तुलना में अधिक थी, क्योंकि भूमि का आकार छोटा है और विदेशियों की पहचान एक जटिल प्रक्रिया है। इसके अलावा, जज सूर्यकांत, जज एमएम सुंदरेश और मनोज मिश्रा ने सीजेआई से सहमति व्यक्त की। इन सभी जजों ने कहा कि संसद के पास इस तरह का प्रावधान लागू करने की विधायी क्षमता है।

जज जेबी पारदीवाला ने जताई असहमति

सुप्रीम कोर्ट में बहुमत के फैसले में कहा गया कि असम में प्रवेश करने और नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च, 1971 की कट-ऑफ तारीख सही थी। हालांकि, जज जेबी पारदीवाला ने असहमति जताई और धारा 6ए को असंवैधानिक करार दिया। उन्होंने कहा कि जाली दस्तावेजों के आगमन के कारण धारा 6ए की खुली प्रकृति का दुरुपयोग होने की संभावना अधिक हो गई है।

फैसले पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं

अखिल असम छात्र संघ (AASU) जिसने 1979 से 1985 के बीच असम में अवैध प्रवासियों के खिलाफ छह साल तक चले आंदोलन का नेतृत्व किया है। इस संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। प्रभावशाली छात्र संगठन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने असम समझौते को अपनी मंजूरी दे दी है। इसके तहत असम में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले सभी लोगों का पता लगाया जाना चाहिए और उन्हें देश से बाहर किया जाना चाहिए।

हालांकि, AASU के पूर्व नेता मतिउर रहमान जिन्होंने नागरिकता अधिनियम में धारा 6A को शामिल करने को चुनौती देने वाली असम स्थित संगठन संमिलिता महासभा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में मूल याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा कि उन्हें इस तरह के फैसले की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि यह राज्य को विदेशियों के लिए डंपिंग ग्राउंड बना देगा।

सरकार का रुख क्या है?

असम में अप्रवासियों की आमद के कारण संसाधनों, नौकरी के अवसरों और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर बोझ को लेकर याचिकाकर्ता की चिंताओं को स्वीकार करते हुए केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि धारा 6A एक विशेष अवधि तक सीमित है और इसे असंवैधानिक घोषित करना इस समस्या का समाधान नहीं होगा। तुषार मेहता ने असम के लोगों पर लगातार बढ़ते अप्रवासियों के नकारात्मक परिणामों पर चिंता व्यक्त की। साथ ही उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर समस्या है।

भारत-बांग्लादेश बॉर्डर की सीमा असम के साथ 267 किलोमीटर

बता दें कि भारत-बांग्लादेश के साथ 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है, जिसमें से 267 किलोमीटर असम में पड़ता है। बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान और उसके बाद जिसके कारण 1971 में पड़ोसी देश स्वतंत्र हुआ। भारत में तेजी से प्रवासियों का आना देखा गया है। बांग्लादेश की स्वतंत्रता से पहले ही असम सहित भारत में बाहरी लोगों का आना शुरू हो गया था। असम के मूल निवासी इस अवैध अप्रवास के खिलाफ लंबे समय से विरोध कर रहे हैं।

Daily Opinion Stars
Daily Opinion Starshttps://dailyopinionstars.com
Welcome to Daily Opinion Stars, your go-to destination for insightful opinions, in-depth analysis, and thought-provoking commentary on the latest trends, news, and issues that matter. We are dedicated to delivering high-quality content that informs, inspires, and engages our diverse readership.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

When a Hoax Shakes a City: Mumbai’s “34 Human Bombs” Scare

Mumbai went on high alert after a WhatsApp bomb threat warned of 34 human bombs and 400 kg of RDX during Ganesh Visarjan. The threat, later exposed as a hoax rooted in personal revenge, highlights how digital misinformation can trigger panic, mobilize massive security, and test public resilience.

ফখরুলের সঙ্গে পাকিস্তান হাই কমিশনারের সাক্ষাৎ: কূটনৈতিক বার্তার আভাস

মির্জা ফখরুল ও পাকিস্তানের হাই কমিশনার ইমরান হায়দারের সাক্ষাৎ বাংলাদেশ-পাকিস্তান সম্পর্ক এবং দেশীয় রাজনীতিতে নতুন বিতর্কের জন্ম দিয়েছে।

China’s Military Parade with Putin and Kim: A Strategic Signal to the World

China’s recent military parade in Beijing, attended by Putin and Kim, showcased advanced nuclear weapons and strategic alliances, sending a strong geopolitical message to the world.

মেঘনা আলমের কোরআনের শপথ ও কুমারী দাবি: আলোচনার কেন্দ্রে নতুন বিতর্ক

বাংলাদেশের আলোচিত মডেল মেঘনা আলম কোরআনের শপথ নিয়ে নিজেকে কুমারী দাবি করে নতুন বিতর্কের জন্ম দিয়েছেন। সামাজিক প্রতিক্রিয়া, আইনি দিক ও মিডিয়ার ভূমিকা নিয়ে বিশ্লেষণ।